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शुक्रवार, 8 मई 2020

अरुणिमा सिन्हा एवरेस्ट फतह करने की कहानी(Story of Arunima Sinha conquering Everest)

अरुणिमा सिन्हा एवरेस्ट फतह करने की कहानी(Story of Arunima Sinha conquering Everest) 

दोस्तों आज मै आपको एक ऐसी रियल कहानी बताने जा रहा है,निश्चित रूप से आज की कहानी को पढ़ने के बाद आज आप बहुत ही प्रेरित होंगे,आज हम बात करेंगे विश्व की पहली महिला जिसका एक पैर नहीं होने के बाद भी उसने कृत्रिम पैर के साथ माउंट एवरेस्ट की ऊंचाइयों तक पहुंच कर अपने नाम एक अनोखा रिकार्ड बनाया है। 

चलना पड़ता है अंगारो पर इतिहास रचाने को बिना ताकत झोंके तो एक जर्रा भी हिल नहीं सकता,
संघर्ष ही दिलाता है एक इंसान को मुकाम उसका बिन मेहनत के कोई फल नहीं मिल सकता। 

 माउन्ट एवरेस्ट कोई छोटा पर्वत नहीं है,एशिया का सबसे बड़ा और ऊँचा पर्वत है,ऐसे ऊँचे पर्वतो पर चढ़ना कोई आसान काम नहीं होता हर किसी के लिए संभव भी नहीं है, इतने ऊंचे पर्वत पर चढ़ना आप सभी को पता है,लेकिन इतने ऊंचे पर्वत पर चढ़ना एक कृत्रिम पैर के साथ चढ़ना यह तो कोई सोच भी नहीं सकता लेकिन इसको संभव करके दिखाया है चलिए हम उनका ये सफर कैसे शुरू हुआ देखते है,
अरुणिमा सिन्हा 

भारत उत्तरप्रदेश के लखनऊ के पास अम्बेडकर नगर करके एक जिला है। जहां 20 जुलाई 1988 को अरूणिमा सिन्हा का जन्म हुआ अरुणिमा के पिता जी आर्मी में इंजिनियर थे ,और माँ स्वास्थ्य विभाग में थी।उनकी एक बड़ी बहन और एक छोटा भाई भी था, अरुणिमा जब बहुत छोटी थीं तभी उनके पिता जी का देहांत हो गया था, अरुणिमा बचपन से उसे खेलो में बहुत शौक था उन्हें फ़ुटबाल खेलना बहुत पसंद था वह नेशनल लेवल की वॉलीवाल प्लेयर थी

कुछ समय बाद वह नौकरी करने की सोची तो वह आर्मी में पैरामिलिट्री फोर्स में अप्लाई की इससे वह नौकरी करने के साथ साथ खेलो में भी हिस्सा ले सकती थीउन्होंने ये सोच कर 2011 में सी आई एस एफ के लिए अप्लाई किया

 कुछ दिनों बाद जब वह जिसमे अप्लाई की थी, उसमे का जोइनिंग लेटर आया तब वह बहुत खुश हो गई थी लेकिन उनके  जोइनिंग लेटर में उनका जन्मतिथि गलत लिखा था, तो वह उस छोटी सी टेक्नीकल गलती के लिए वह इतना अच्छा मौका किसी भी तरह से खोना नहीं चाहती थी इसलिए उसको सुधरवाने के लिए खुद ही दिल्ली के लिए निकल गई

जब वह दिल्ली के लिए निकली तो वह कल्पना भी नहीं की थी की इस सफर से उनका जीवन पूरी तरह से बदल जायेगा 12 अप्रैल 2011 वह तारिक है, जिसको अरुणिमा अपनी जीवन में कभी नहीं भूलेंगी यह वही तारिक है जिस दिन इनकी जीवन पूरी तरह से बदल गई ट्रेन के जनरल कम्पार्टमेंट में एक सीट पर बैठी थी वह बहुत ही खुश होकर अपने नौकरी के बारे में सोचते हुई बैठी थी

 तभी कुछ समय बाद 4 गुंडों ने अरुणिमा पर हमला कर दिया वह अपने गले में अपनी माँ के दिया हुआ सोने का चेन पहनी हुई थी ,जिसे वह 4 गुंडों ने छीनने की कोशिश कर रहे रहे थे अरुणिमा ने अपने बचाव के लिए उन गुंडों को लात घुसो से मारने लगी देखते देखते वहा कुछ समय में भीड़ इकट्ठा होने लगी, जब वह गुंडे लोग अरुणिमा से मुकाबला करने में कमजोर पड़ने लगे तो उन चारो ने मिलकर अरुणिमा को चलती ट्रेन से उठाकर बहार फेंक दिया
अरुणिमा सिन्हा 

अरुणिमा  को जब चलती ट्रेन से बाहर फेका तो वह सामने से एक आती हुई ट्रेन से टकराई और टैक्स की दूसरी तरफ जा गिरी एक दूसरी ट्रेन उसकी तरफ आ रही थी अरुणिमा का पैर ट्रैक पर फस गया था, उन्होंने उसे निकलने की बहुत कोशिश की लेकिन वह अपने फसे हुए पैर को नहीं निकल पाई और ट्रेन उसकी पैर पर गुजर गई वह दर्द से बहुत चिल्ला रही थी पर कोई भी उनकी आवाज सुनने वाला नहीं था

 उस दिन लगभग बहुत सारे ट्रेन उसके पैर के ऊपर से गुजरी पर कोई भी उनके मदद के लिए वहा नहीं पंहुचा वह काफी देर से चिल्लाती रही लेकिन कोई भी नहीं आया फिर वह बेहोस हो गई पूरी रात वह उसी ट्रैक पर पड़ी रही फिर अगले दिन सुबह पास के गांव के कुछ लोगो ने अरुणिमा को खून से लतपथ बेहोस हालत में देखा तो वही पास के हॉस्पिटल में  सुचना देकर हॉस्पिटल में भर्ती करवाया

हॉस्पिटल में जब डॉक्टर ने देखा तो उनके उस पैर पर जिस पर ट्रेन गुजरी थी उसमे इन्फेक्शन हो गया था तो डॉक्टर ने ओपरेशन करके उनके उस पैर के घुटने के निचे का पूरा हिस्सा काटना पड़ा अरुणिमा बहुत रो रही थीउनको विश्वास भी नहीं हो रहा था की उनके साथ ऐसा कैसे हो गया उनका ये घटना सभी न्यूज अखबारों में आ गया, फिर कुछ समय के बाद 18 अप्रेल 2011 को उन्हें आगे इलाज के लिए उन्हें एम्स में शिफ्ट करवाया अरुणिमा इस घटना को सोच सोच कर बहुत परेशान हो रही थी

 उनका अपना ये जीवन अधूरा सा लगने लग गया था लेकिन वह ऐसा जीवन नहीं जीना चाहती थी और उन्होंने अपना जीवन बदलने के लिए एक ऐसा लक्ष्य चुना जो, जो सुनने में ही ठीक लगता है, लेकिन उन्होंने एक पैर न होने के बाद भी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की ठानी कोई भी इस स्तिथि में हो और अपनी जीवन को बदलने के लिए इस तरह से एवरेस्ट पर चढ़ने का विशाल लक्ष्य कोई नहीं चुनता लेकिन अरुणिमा ने अपना जीवन बदलने के लिए एक विशाल सा लक्ष्य चुना

अरुणिमा ने ये बड़ा लक्ष्य तो चुन लिया लेकिन ये एक पैर में कैसे करेगी ये बड़ी चुनौती उनके सामने थी, उनके दाएं पैर में आपरेशन के बाद एक राड डाला गया था, किसी को कृत्रिम पैर पर चलने के लिए काफी समय लग जाता है, लेकिन अरुणिमा ने कुछ  दिनों के अंदर ही अपने उस कृत्रिम पैर से चलना शुरू कर दी
अरुणिमा सिन्हा 

 और कुछ दिनों बाद हॉस्पिटल से निकलते ही एवरेस्ट पर फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बचेंद्री पाल से मिलने जा पहुंची उनसे मिलने के बाद उन्होंने बहुत सारे बात अरुणिमा को बताई जिससे अरुणिमा को और हौसला मिला उनसे मिलने के कुछ दिनों बाद वह कृत्रिम पैरों से थोड़ा अच्छे से चलने लगी तो अरुणिमा ने नेहरू इंस्टीट्यूट आफ माउंटेनियरिंग, में भर्ती ले लिया

 वहां उन्होने ने काफी दिनों तक 18 महीनो तक लगभग कठिन मेहनत किया लगातार उस घटना के बाद भी हौसला कम नहीं हुआ अरुणिमा का उन्होंने बहुत ज्यादा मेहनत कर रही थी ,उनका अपने ऐसा बुलंद हौसला पर पूरा विश्वास था, इस तरह काफी लोगो का सहयोग और प्रोत्साहन अरुणिमा को मिलता था

जब अरुणिमा ने इस लक्ष्य का शुरुवात किया तो उनको काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा उनको ऐसे ऊंची एवरेस्ट पर चढ़ते समय उनको उनके कृत्रिम पैर के कारण बहुत दर्द होता था, इतने ऊंचे पर्वत पर चढ़ना किसी के लिए आसान नहीं होता उनको दर्द होता था, उसके बाद भी लगातार मेहनत कर ही रही थी

 उस विशाल पर्वत पर पहुंचने के लिए उस रस्ते में 4 कैम्प होते है, और उसके आगे का रास्ता और भी कठिन होता है इसके आगे का रास्ता ऐसा होता है जहा लोग पहुंचते पहुंचते दम तोड़ देते है एक बांग्लादेशी ने तो अरुणिमा के सामने ही अपनी दम तोड़ दी लेकिन इसके बाद भी अरुणिमा की बुलंद हौसला कम नहीं हुआ और वह आगे बढ़ती रही

17 घंटो की कड़ी मेहनत के बाद 21 मई 2013 को सुबह 10:55 पर वह अपने लक्ष्य माउंट एवरेस्ट पर अरुणिमा  पहुंच गई
अरुणिमा सिन्हा 

और उस विशाल माउंट एवरेस्ट पर पहुंच कर अपने देश का तिरंगा फहराया और अपने आइडल स्वामी विवेकानंद जी की तस्वीर वहा पर रख कर उन्होंने दुनिया को अपनी विशाल सा लक्ष्य को पूरा करके दिखाने के लिए उन्होंने वहा अपनी बहुत सारे  फोटो ली वीडियो बनाई, इस विशाल शिखर तक पहुंचने में उन्हें 52 दिन लगे

उनको ये नहीं लगा था की वह वापस जिन्दा वापस लौट पायेगी उनके आक्सीजन सिलेंडर से आक्सीजन ख़तम होते जा रही थी जब वह वापस लौट रही थी तो कुछ दूर चलते ही उसकी आक्सीजन ख़तम हो गई, अपने हाथो से अपनी किस्मत लिखने में विश्वास रखने वाली अरुणिमा को लगा की अब उनकी चंद सांसे ही बची हैं, लेकिन फिर भी वह अपनी जीवन की इतने बड़े लक्ष्य को अपने सपने को पूरा करके बहुत खुश थी तभी थोड़ी ढेर बाद वहा उनके शेरपा आक्सीजन लेके पहुंचते है फिर दोनों विशाल शिखर से निचे उतरने लगे

अरुणिमा को उनके ये विशाल लक्ष्य को पूरा करने के लिए अनेको पुरस्कारों से सम्मानित किया गया,अरुणिमा सिन्हा ने अपनी जीवन पर एक बुक भी लिखी है,जिसका नाम (BORN AGAIN ON THE MOUNTAIN) है,जिसे दिसम्बर 2014 में प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी द्वारा लांच किया गया  इतना ही नहीं अरुणिमा को भारत का सबसे बड़ा सम्मानीय पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित किया गया उनका लक्ष्य यही ख़तम नहीं होता इतने बड़े लक्ष्य को पूरा करने के बाद अरुणिमा ने अपने भारत देश का तिरंगा दुनिया के सातो महाद्वीपों पर फहराने का बड़ा लक्ष्य रखा

 और उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए उन्होंने मेहनत करने लगी जिसने माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने का लक्ष्य इतने कम समय में पूरा कर लिया उनके लिए दुनिया के सातो महाद्वीप पर पहुंचना कठिन नहीं था, और अरुणिमा ने एशिया,यूरोप,द.अमेरिका,ऑस्ट्रिलिया,आफ्रिका,और उत्तरी अमेरिका और यह बड़ा लक्ष्य भी 4 जनवरी 2019 को उन्होंने अंटार्टिका के माउन्ट विंसन पर देश का तिरंगा फहराकर पूरा किया
अरुणिमा सिन्हा 

अरुणिमा ने बहुत कम उम्र में 23 वर्ष में अपना पैर खोया और कड़ी मेहनत करके 25 वर्ष में केवल 2 साल में ही इतना बड़ा माउन्ट एवरेस्ट पर पहुंच कर एक अनोखा रिकार्ड अपने नाम किया और इतना ही नहीं 30 वर्ष के होते होते उन्होंने दुनिया के सातो महाद्वीप पर देश का तिरंगा फहराया और असंभव को संभव करके दिखाया उन्होंने ये साबित किया की हौसला बुलंद हो तो कोई भी चीजे मुश्किल नहीं है


दोस्तों ये थी भारतीय महिला अरुणिमा की कहानी इनकी कहानी से हमें सीख मिलती है, की परिस्तिथि कैसी भी हो यदि हौसला बुलंद हो तो कितना भी बड़ा लक्ष्य क्यों ना हो उसको पूरा किया जा सकता है उम्मीद करता हु दोस्तों इस रियल inspire कहानी से आपको प्रेरणा मिली होगी यदि अच्छी लगी हो तो comment में बताये और share जरूर करें 

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